Friday, 10 April 2020

मेरी घर की कबुतर अपनी चुड़मुन को छोड़ कहाँ चली गई?

                             

                परिकल्पना पत्रिका

  • आज की डायरी 07.04.2020  

मेरी घर की कबुतर अपनी चुड़मुन को छोड़ कहाँ  चली गई? 
ज का दिन बहुत खुशनुमा रहा पर रात 3 बजे सें मन बहुत चिंतित और परेशान था। वस्तुतः मेरे घर के रैक वाली खिड़की के ऊपर एक कबुतरी पिछले तीन महिनें से रह रहीं थीं। आए दिनों वह अपनें अंडे देने के लिए अपनें घोंसले को लकड़ी की तिल्लीयों से सजा रही थी।जहाँ तक मुझे याद हैं कि वह कबुतरी 

अंडे देने के बाद लगभग 1 महिने तक अपनें अंडे को सेवि थी,फिर अंडे से चुजा़ निकला था।आज वह चुजा़ एक चुड़मुन बन गई हैं।


पर वह अभी बहुत छोटी हैं।वह कबुतरी मेरे रैक पर बहुत गंदगी फैलाती हैं,पर फिर भी हम उसे बिल्कुल परेशान नहीं करते। ऊपर से हम 
हमेशा उसके ताक- झाक में रहते हैं ताकि उसे और कोई परेशान ना करें।
मैं जिस बिल्डींग में रहता हूँ,वह बिल्डींग एक तीन मझला बिल्डींग हैं।इस बिल्डींग में मैं अकेला रहता हूँ। और यहाँ लगभग 100 से  भी ज्यादा कबुतर, एवं कुछ गिलहड़ीयाँ  रहती  हैं।
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ये कबुतर अपना भोजन-पानी का व्यवस्था आसपास के मैंदानो मे जाकर  स्वयं करती है।इस बिल्डींग में राहुल चंद्र सर जो कि सिविल सर्विसेज़ परिक्षाओं की तैयारी करवातें हैं एवं जो कि एक जानेमानें चर्चित शिक्षक है, का आनलाइन कोचिंग क्लास चलता हैं। और यह बिल्डिंग भी उन्ही का हैं।
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ये कबुतर कोचिंग क्लास में भी अपना घोंसला बना रखे हैं पर इस्से हमें कोई परेशानी नहीं होती।

हाँ पर एक बात का डर हमेंशा बना रहता हैं,कि हमारे समाज में एक नट जाती का समुदाय पाया जाता हैं जो की घुमन्तु एवं शिकारी मनोवृति का होता हैं। इसलिए हमें अपनें कबुतरो की सुरक्षा के लिए हमेशा इनसे सतर्क रहना पड़ता हैं।
एक दिन मैंनें उन्हीं नट के बच्चों को उनके गुलेल के साथ मेरे बिल्डींग के कबुतरों को शिकार करते देखा।

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उस दिन तो मैंने उन्हें डाँट कर भगा दिया पर उसके कल होकर मेरे घर के रैक  वाले चुड़मुन की माँ का कोई अता पता नही था। इस बात की जानकारी मुझे तब हुई जब चुड़मुन रात भर अपनें नुकिली    चोंच से उसके घाेंसले के सामने रखे एक खाली डब्बे को भुख से व्याकुल होकर जोड़-जोड़ से पीट रही थीं,पर मुझे ऐसा  प्रतित हुआ कि कोई चोर हमारे निचले तल्ले के दरवाजे को यह जानने के लिए पिट रहा हैं कि

बिल्डींग में कोई जगा हैं या नहीं,मैनें जैसे ही दरवाजे के पिटने की आवाज सुनी मैे झट से अपने टाॅर्च को लेकर दरवाजा खोलकर बाहर की ओर निकला पर दूर-दूर तक मुझे कोई नहीं दिखा, फिर मैं यह सोचा कि शायद चैत्र माह का पछुआ  हवा जोड़ो से बह रहा हैं,और इसी हवा के झोंको से दरवाजा पिटनें की आवाज़ आई होंगी।मैं मुख्य द्वार के दरवाजे को बंद कर पुणः अपनें कमड़े में आकर सो गया। पर फिर कुछ समय बाद फिर से दरवाजें पिटने की आवाज़ सुनाई दी। इस बार मै बिना कुछ साेंचे समझे अपने टाॅर्च को लेकर छत पर चला गया वहाँ ऊपर बड़ी जोड़ो की पछुआ हवा बह रही थी और साथ मे बिल्डींग के सटे एक भूतहा पीपल

का पेड़ भी ऐसे झूम रहा था मानो एक नहीं दस दस भूत पेड़ को एक साथ झमोड़ रहा हों।
 वैसे तो मुझे यहाँ कभी डर नहीं लगता था,पर उस पीपल के पेड़ को
झूमते देखकर उस दिन मुझे बहुत डर लगा। फिर भी हिम्मत जुटाते हूए मैंने छत के चारो ओर नीचे की ओर एक  नज़र दौड़ाया पर कही कुछ नहीं दिखा। फिर मैं वापस अपनें कमड़े में आ गया। और जैसे ही मैं वापस सोने जा रहा था,कि फिर से वहीं खटखटाने की आवाज़ सुनाई दी। अब इस बार मैंने बिना डरे हुए,उस आवाज़ को ध्यान पूर्वक सुना और तब मुझे पता चला की ये आवाज़ हमारे कमडे़ के रैक के ऊपर से आ रहीं है। जब मैं ऊपर जाकर देखा तो पाया कि चुड़मुन अपने चोंच से सामने रखे खाली डब्बे को जोड़-जोड़ से पिट रहीं थी। चुड़मुन की इस हरकत को देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया।पर बाद में यह गुस्सा
मेरी हॅसी मे बदल गई।क्योकीं मुझे जो चोर लग रहा था वह चोर कोई और नहीं मेरे घर की चुड़मुन थी।चुड़मुन ऐसा भूख से परेशान होकर कर रहीं थी,पर ऐसा ए पहला दिन था,जब मैने चुड़मुन को रात को अकेला देखा था।मुझे समझ नही आ रहा था कि आखिर चुड़मुन की माँ रात को अपनेे घोंसले मे क्यो नहीं लौटी।


फिर मेरा ध्यान कल गुलेल से खेल रहे बच्चो पर गया और मुझे लगा कि चुड़मुन की माँ को उन्ही शिकारी बच्चों ने शिकार कर अपने घर ले गए।पर चुड़मुन की इस हालत को देख मुझे बहुत बुरा लग रहा था। और मैं यह सोच कर परेशान हो रहा था कि चुड़मुन तो इतनी छोटी हैं और वह अभी उड़ भी नहीं सकती ,बेचाड़ी चुड़मुन भूख से छटपटा कर मेरे घर में मर जाएगी। हालाँकि इसमे मेरी कोई गलती नहीे थी। पर मैंने परेशान होकर अपने घर फोन किया और अपने भाभी को बताया और भाभी इस बात को सुनकर बड़ी जोड़-जोड़ से हँसने लगी और फिर उन्हें भी बाद में इस बात का बहुत अफसोस हुआ।अब मैं ये सोचने लगा कि अगर मैं अपनें चुड़मुन को दूसरे कबुतर के घोंसले मे रख दूँ तो वो कबुतर भी मेरे चुड़मुन को मार देंगे। मैं सच में ये सोच-सोच कर बहुत परेशान हो रहा था। और मुझे लग रहा था कि अब मेरे चुड़मुन का क्या होगा ?

मैं इतना भावुक हो गया था कि मैनें 3 बजें सुबह में हीं  चुड़मुन और अपनी कबुतर पर एक कविता लिख डाली ।

प्रस्तुत हैं मेरी लिखी हुई कविता का कुछ अंश:-कहाँ गई अरि ओरी चिड़ैया ,आज दिखत कहीं नाहीं।
रोज़ तु आकर यहीं बैठत राहीं,पर आज मिलत कहीं नाहीं।।
देर-सवेर तु आ जात रहुँ,पर आज त देर भईल भारी ।
कहाँ गई अरि ओरी चिड़ैया ,आज दिखत कहीं नाहीं।।

चुड़मुन रात भर सो नहीे पईले, अरे ओ चुड़मुन के मैया।
भुख से छटपट करत रहे उ,कोमल सी नन्ही चिड़ैया।।

निर्गुन हैं,निर्बोध हैं उ अभी,पंख भी निकलल नाहीं।
भूख,प्यास,ममता के छैया और अकल कुछु नाहीं।।
मन चिंतित ह,मन व्याकुल ह अरी ओ मोरी घर की चिडै़या।

धर लेहलक तोड़ा कोई शिकारी,कि कहीं और तु फँस गइल।।
कहाँ गई अरि ओरी चिड़ैया ,आज दिखत कहीं नाहीं।
रोज़ तु आकर यहीं बैठत राहीं,पर आज मिलत कहीं नाहीं।।
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बाद में शायद ईश्वर नें चुड़मुन और मेरी प्रार्थना को सुन ली क्योंकि सुबह
9 बजे चुड़मुन की माँ अपने घोंसले में वापस आ गई।
चुड़मुन अपनें माँ के चाेंच से दाने चुनने मे लग गई,और मैं मन-ही-मन भगवान को धन्यवाद दे रहा था और यहीं सोंच रहा था कि भगवान ऐसे ही हर एक बिछड़े को उनके अपनों से हमेशा
मिलवाते रहना।।
धन्यवाद!!
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